Monday 31 December 2012

प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे?
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम 
ना नैन मिले ना अधर मिले 
ना साँसो का हुआ मधुर मिलन 
प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे,
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम। 
ना काँटे पथ से हटा सकी 
ना खुद को ही मैं मिटा सकी॰ 


एक अधूरेपन.... की पीड़ा से 
लथपथ है, जाने क्यूँ मन,
प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे,
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम 
मन की प्यास कहाँ बुझती है...?.
साँसे तुम बिन हैं मद्धम 
दिन जैसे-तैसे कट जाता 
निशा मे यादों का कृंदन 
प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे,
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम 
सोनिया बहुखंडी गौड़

 

Saturday 22 December 2012

ज़िंदगी जीती रहूँ मैं उधार की

ज़िंदगी जीती रहूँ मैं उधार की
जब तक मिले साँसे तुम्हारे प्यार की,

 हांथों की इन लकीर मे तेरा, ही नाम है
उस नाम संग जीना मेरा बस काम है

 आशाओं मे जीती हूँ के मिल जाओ तुम
आलिंगन मे आके ना कहीं फिर जाओ तुम

... तुम भूख हो तुम प्यास् हो 
 टूटी हुई इच्छाओं की अरदास हो

कस्तूरी की भांति छुपे हो भीतर कहीं
मैं बांवली से ढूंदती क्यूँ फिर रही ?
सोनिया बहुखंडी गौड़

Saturday 8 December 2012

नींद ने टुकड़ों-टुकड़ों मे आना शुरू कर दिया

नींद ने टुकड़ों-टुकड़ों मे आना शुरू कर दिया
जब से आपने ख्वाबो मे कदम धर दिया 


अब हालात संभाले नहीं संभलते
हमने आपका नाम छुपाना शुरू कर दिया


हाल-ए-दिल बयां नहीं कर पाते हैं

इसी बहाने गजल बनाना शुरू कर दिया

बेचैन तुम भी हो बेचैन मैं भी
इस बेचैनी को हमने दिल मे भर दिया

एक दिन जरूर आएगा बेबसी का तूफा
हमने किनारों का इंतजाम पहले से ही कर दिया

मर्जी तुम्हारी की तुम आओ ना आओ
हमने ज़िंदगी को तुम्हारे नाम कर दिया

भूख होती तो उदर मे दबा लेती


भूख होती तो उदर मे दबा लेती
अश्रु होते तो नयन मे छुपा लेती
किन्तु यह प्रेम प्रियतम है तुम्हारा
इसको दबाऊँ मैं कहाँ?
इसको छुपाऊँ मैं कहाँ?
बेला की महक सा है ये
पाखी की चहक सा है,

जब भी तुम्हारा जिक्र हो
महकता है ये चहकता है ये
इस महक को, इस चहक को
बोलो छुपाऊँ अब कहाँ?
तुम ही बताओ ओ! सजन
इस प्रेम को लेकर जाऊँ मैं कहाँ? :)

एक सत्य निष्काषित हो गया जीवन से।




क्या पाया इस जीवन मे!!
बस मैंने खोया
जो पाया वो भ्रम था
जो खोया वही सत्य था

दुनिया के छल,प्रपंच मे उलझी
और तुमको खो बैठी
तुम ही सत्य थे
जब तुमको खोया
एक सत्य निष्काषित
हो गया जीवन से।

अंशुमलि आ गए


 
 
अंशुमलि आ गए
सोई धरा को जगाने,
सुगंधि उषा की फैली
नभ लगा मुसकाने
पक्षियों का मधुर कलरव
छा गया परिवेश मे
ऊमीदों के स्व्पन जागे,
नई दुनिया को सजाने..........
सोनिया बहुखंडी गौड़

मेरा मुकदर उनके लिए ही बनाया होगा

लोगों ने यूंही हल्ला ना मचाया होगा
कोई तो है जो दिल मे आया होगा!


उनके आने से अंधेरे मे चराग जल उठते
यूंही तो न शहर जगमगाया होगा


मुस्कराहट से उनकी गुलशन मे शगूफ़े खिलते

फूलों को भी उनपर प्यार आया होगा

खुशियाँ छा गई उनके आने से
मेरा दिल भी किस्मत पर इतराया होगा

ए ख़ुदा ! ये साथ छूटे ना अब कभी
यकी हैं तूने मेरा मुकदर उनके लिए ही बनाया होगा

तुम कौन हो जो बेधड़क

तुम कौन हो जो बेधड़क
दिल मे चले आते मेरे
अब सुबह हो या सांझ हो
सपने तो बस आते तेरे
जब जिक्र होता है तेरा

अहसास खिल जाते मेरे
अब सुबह हो या सांझ हो
सपने तो बस आते तेरे


तुम प्रीत की बरखा बने
आँगन मे आ-टिप-टिप बरस जाते मेरे
अब सुबह हो या सांझ हो
सपने तो बस आते तेरे

बन जाओ तुम,चंदन सजन
स्पर्श से अपने,अंग-अंग को महका दे मेरे
अब सुबह हो या सांझ हो
सपने तो बस आते तेरे।

Monday 26 November 2012

मुझे गणित नहीं आती

मुझे गणित नहीं आती
रिश्तों मे जोड़-घटाना
स्नेह मे लाभ और ब्याज
मैंने नहीं सीखा
मुझे प्रेम का भूगोल
बखूबी आता है
शीत मे प्यार की धूप
गरमी मे स्नेह की छाँव
यही देना सीखा
लेकिन वापसी मे कितना
 
ब्याज मिलेगा ये अपेक्षा
ना की ना करूंगी
तुम जुड़े हो मेरे जीवन मे
तुम पर कविता रचूँगी
तुम्हारे आने की कुंवारी
आशा लिए द्वार मे नहीं
खड़ी मिलूँगी।

Thursday 22 November 2012

जीवन को मैं फुसला रही!!!


तुम्हारी  स्मृतियाँ  निशा के संग  दबे  पाँव आ रही
ना जाने क्यूँ हृदय पीड़ा? अभ्र बन,नैनो मे मेरा छा रही।
 
सो गए इस गहन तम मे,जग के सभी सहयात्री
मेरी व्यथाएं ना जाने क्यूँ?फूट-फूट रोये जा रही।
 
दूर मध्यम सी ध्वनि मे निम्नगा है गीत गाती
कोमल हृदय मे आपदाएँ,पग पसारे बीज दुख के बोये जा रही।
 
गत रैन भी-  मैं तारों की गणना करती रही
इस रैन   मे भी   नखत   गिनती जा रही।
 
पाणि का संजोग ना था,प्रेम फिर भी कर लिया
प्राण रथ की ताक मे, जीवन को मैं फुसला रही!
 
आनंद की मुझे थाह दे ईश्वर भी देखो सो गया,
निष्ठुर विभु की नींद को अपलक मैं देखे जा रही।
 
निःस्तब्ध तम मे श्वास वीणा सुर तुम्हारे छेड़ती,
इस भरे जग मे, भावों की मेरी बोली लगाई जा रही।
 
ना जाने किस देश मे तुम मुझे हो सोचते
और यहाँ मेरे देश मे मैं पथ निहारे जा रही।
 

Tuesday 20 November 2012

बातें क्या हैं? छल हैं।


बातें क्या हैं?

छल हैं।

जो मैं करती हूँ

जो तुम करते हो...

एक अरसा बीता

हम दोनों को

छल किए हुए.........

वही छल जो

हम दोनों को

एक-दूसरे के करीब

लाता था----

छल एक भ्रम था

जो नश्वरता का गुण

लिए आया था हमारे बीच

और अपने गुण के साथ

समाप्त हो गया-----

अब तो एक रेखा बन गई

है तुम्हारे और मेरे बीच

एक लक्ष्मण-रेखा!

जो अखंड सत्य है

तुम अपनी समाप्ति के

डर से, और मैं अपनी----

इस रेखा को पार

नहीं कर पा रहे हैं----

आश्चर्य!! हमारा रिश्ता

भ्रम पर टिका था,

जिसने अपनी समाप्ति के

साथ-साथ हमारे

रिश्ते को भी समाप्त कर गया।

 

Saturday 17 November 2012

पीछे रह गई वो बातें गुजरे जमाने की


कोशिश  तमाम की  आकाश को  ज़मी से  मिलाने की
यहाँ भी मुँह की खाई, खाई थी जैसे पहले प्यार को पाने की 
 
उनकी  उलफत  मे  उलझे  पड़े हैं   हम   आज भी
ख्वाबों मे भी कोशिश ना की उनकी यादों से दूर जाने की
 
जख्म-ए-जुदाई   का  दर्द  रातों  को  सताता  है
सहती रही पर कोशिश ना की ज़िंदगी से दूर जाने की
 
कितने  खूबसूरत पल  थे, जब  आँखों से बात  करते थे वो
उन पलों ने पल्ला झाड़ा, पीछे रह गई वो बातें गुजरे जमाने की
 
कुछ दुनिया के झाँसो ने,कुछ रिवाजों ने तुमको हमसे दूर किया
कसक आज भी  दिल को  सालती है, तुम्हें ना पा पाने की  

Monday 12 November 2012

जला ना पाये जो ज्ञान का दीप.....

कभी घर को बुहारा, कभी घर की दीवारों पर लगे जालों को उतारा,
जला ना पाये जो ज्ञान का दीप, कैसे करेंगे वो अज्ञानता संग गुजारा।
हृदय की कलुषता मिटा भी ना पाए, दिवाली के दीपों का लेते सहारा,
दीपों की माला तभी होगी सार्थक,अज्ञानता से कर लेंगे जब किनारा।

Saturday 10 November 2012

भूख की दस्तक


 
ना जाने दस्तक किधर से आ रही है?
गरीबों की खोलियों मे भूख कसमसा रही है
 
भूख को कैसे सुनाऊँ माँ की सिखाई लोरियाँ
लोरियाँ भी सिसकियों मे बदलती जा रही है
 
भूख तो अदृश्य है,देखा नहीं जिसको कभी
पेट की गलियों मे छुप कर शोर ये मचा रही है
 
 
रात की तन्हाइयों मे जाग जाती ये सदा
इसकी सदाएं आसमां के चाँद को तड़पा रही है
 
इक तरफ खामोश चूल्हा,एक तरफ बर्तन पड़े
रात की खामोशियाँ मेरे दिल को चीरे जा रही है
 
ए ख़ुदा कानों मे मेरे ये दस्तक एक चीख है
कचरे मे पड़ी रोटियाँ भूखे को मुह चिड़ा रही है
सोनिया प्रदीप गौड़
चित्र: गूगल से साभार  

Thursday 8 November 2012

दोस्ती मे मुझे अब चुक जाने दो

मेरी चुप्पियों को आज टूट जाने दो
आँख में जम गया जो खार उसे गल जाने दो
 
पड़ चुकी है लत मुझे धोखा खाने की
कोई थामो नहीं मुझको इश्क़ से दूर जाने दो
 
चूक होती रही मुझसे, दोस्तों को समझने मे
ख़ुदा, फरियाद करती हूँ दोस्ती मे मुझे अब चुक जाने दो
 
ना जाने क्या दिल मे भर बैठे हैं वो अपने
सागर-ए-दिल मे उनके मुझे उतर जाने दो
 
झील सी गहरी आँखों से बरगलाते रहे मुझको
मुझे रोको नहीं, इस झील मे अब डूब जाने दो
 
खता इतनी ज़िंदगी मान बैठी मैं तुम्हें अपनी
खता की दो सजा मुझको, मौत के करीब जाने दो
सोनिया बहुखंडी गौड़

ख्वाबों की तो जात ही है टूट जाने की

हम कोशिश करते रहे उनको अपने दिल मे बसाने की
पर उन्होने ज़िद ठान ली थी हमसे दूर जाने की

वो उम्र भर सोचते रहे के हम चाहते नहीं उनको
हम दलीलें ही देते रह गए, अपने मोहब्बत के पैमाने की
 
बे-मतलब, बे-बात रूठते रहे वो,
और हम तरकीबें सोचते रहे उनको मनाने की
 
भटकता रहा वो बेमकसद इधर-उधर
कोशिश ना की इक बार भी मेरे दिल के ओर आने की

हम खोये रह गए उनके ख्वाबों में
ख्वाबों की तो जात ही है टूट जाने की
सोनिया बहुखंडी गौड़

Sunday 4 November 2012

जब तिमिर ढलेगा एकांत का

जब तिमिर ढलेगा एकांत का
समझुंगी तुम आए,
मेरे गीतों के शब्दों मे,
प्रियतम तुम ही तुम बस छाए।
भू पर क्रीड़ित चंदानियाँ,
नभ मे चाँद अकेला,
चाँद की दुखद अवस्था देख
मेरा दुख भी बढ़ जाये।

मेरे रोम-रोम मे प्रियतम ,
तुम ही तुम बस छाए।
मौन तुम्हारा बना शीर्षक,
हृदय क्यूँ शोर मचाए।

 नैनो की गतिविधियां देखो!
सबके समक्ष हैं आए,
मेरे संवादों मे प्रियतम
तुम ही तुम बस छाए।

 मेरे प्रेम की वैदेही
अग्नि परीक्षा भी देगी,
यदि तू जीवन मे
राम बनकर आए।
मेरे प्रेम की रामायण मे
प्रियतम तुम ही तुम बस छाए
सोनिया बहुखंडी गौड़

Friday 26 October 2012

कौन है सूने हृदय मे?

कौन है सूने हृदय मे?
कौन आहें भर रहा है?
कौन गर्वित भाव से ?
स्नेह वर्षा कर रहा है?

...
कौन है जो चक्षुओं से
पीर के मोती पिरोता
कौन है जो स्वप्न मे,
आके है रोता?

कौन है जो अदृश्य होके
दृश्य मेरे ले रहा है
कौन है जो मौनता से
दिशा ज्ञान दे रहा है।

कौन है जिसने
अभी थामी थी बाहें
कौन है जिसके,
बिना सूनी है राहें ?

Sunday 21 October 2012

प्रेम कुदाली तुमने चलाई

हृदय मे गति थी कल तक
प्रेम कुदाली तुमने चलाई
मेरे हृदय को विस्थापित कर दिया
ये षड्यंत्र नहीं तो क्या?
अच्छा-भला तो फुदक रहा था कोने मे

तुमने अपने कोने से मिला लिया,
और मेरी कुँवारी आशाओं को
विचलित कर किधर गए?
अतिशयोक्ति नहीं किन्तु
निर्जीव हो गई हूँ मैं,तुम्हारे बिना
दिमाग चल रहा है, दिल नहीं
विनिमय कभी एक तरफा नहीं होता
यदि मेरे हृदय को अपने कोने से
मिला बैठे हो तो, अपना कोना मुझे दे दो
यही तो है प्रेम का सच्चा सौदा,
आओ दोनों मिलकर षड्यंत्र करे
तो षड्यंत्र सार्थक हो जाएगा,
और मेरे हृदय का विस्थापन भी :)

Thursday 11 October 2012

एक भूतिया घर !

 
एक भूतिया घर !
और हम आत्माएँ
भटकती हुई,
निर्वाण हेतु संघर्षरत
श्वेद से लथपथ!
अपरिचित मुस्कान,
का होता आदान-प्रदान
किन्तु मित्रता असंभव !
कैसा है ये घर!
भूतिया घर।
दिन के उजास मे
भी,क्रोध के चमगादड़
दीवारों से चिपके रहते,
और अहम के उल्लू
हमें घूरते रहते,
मिट नहीं पाता,
रात-दिन का भेद
गलतफहमियों की स्याही
भी आस-पास फैली पड़ी है ,
सूखाने के लिए सोख्ता भी
नहीं मिलता.......
हम आत्माएँ भी
मुक्ति चाहती हैं,
तंत्र-मंत्र-यंत्र जो हो
जल्द उपचार हो जाये
और इस भूतिया घर
को मुक्ति मिल जाये  
मुक्ति मिल जाये---------
सोनिया बहुखंडी गौड़

Wednesday 10 October 2012

एक गर्भवती


एक गर्भवती,
रात मे पीड़ा से कराहती,
बेचैनी से करवटें बदलती।
बगल मे सोते पति को
आवाज ना दे पाई,
मन मसोस के चुप रह गई,
...
और हल्का सा मुस्काई
कल तक की बात हई।
कल मेरा खिलौना आ जाएगा
प्रांगण मे उसकी किलकरियाँ
गूजेंगी, और मेरा अस्तित्व
पूर्ण हो जाएगा......
तभी दर्द की तेज लहर उठी
वो चिल्लाई........माँ
और हो गई बेसुध.....
होश आया तो महसूस
किया खुद को
आई0सी0यू0 के बिस्तर पर
नसों मे गुलूकोज की सुइयां,
धँसी हुई, फिर भी
आँखें नन्हें को
ढूंदती हुई।
नर्स ने इस मौन
को ताड़ा,और चुपके
से कहा--- बेटा था!!!
किन्तु मरा हुआ !!
चीख भी ना पाई खुल कर
न सुन पाई अपने खिलौने
के टूटने की आवाज.....
कल से आँगन मे
किलकारियाँ नहीं
उसकी सिसकियाँ गूँजेगी,
और उसका खामोश दर्द,
जो एकांत मे बोलेगा।
सोनिया बहुखंडी गौड़


इतना कहा मेरा मान जा

क्या व्यथा है,
प्रेयसी मुझको बता,
नैन मे बहता लवण
कहता है क्या?
यदि तू कहे
तो चंद्रमा की
...
चाँदनी तेरे पग
पसारूँ..... या
निशा के रंग
को तेरे नैन
मे, मैं सवारू
सुबह को कर
दूँ विवश तेरे
आस्प खिल मे
जाये वो,
अपने हृदय की
विवशता मुझको जता।
बस दो क्षणो की
ही बात है, मैं
लौट कर फिर
आऊँगा, आशाओं
को तुम द्वार पर
रखना खड़े....
और व्यथाओं को
हुवि मे भस्म कर
सुखो की छाया
मे जा .....
इतना कहा मेरा मान जा....
सोनिया बहुखंडी गौड़

Wednesday 26 September 2012

एक कटाक्ष कविता

शितिकष्ठ विश्व के कल्याण मे
कालकूट प्रतिपल पिये....
और मनुज आयुध लिए,
शिव संहार को खड़े....
भक्ति को दाहस्थल मे कर इति,
विचारों का नग्न नृत्य कर रहे।
हे! शिव अनुग्रही रूप को त्याग कर,
काव्य दंभ रत मनुष्य को,
अवग्रही रूप धर, काल के,
गर्भ मे उतार दो।
सोनिया प्रदीप गौड़



ये कविता उन के लिए जो रिश्ते की आड़ लेकर  अपना फायदा पूरा करते हैं। और रिश्तों को विचारों के माध्यम से कवच हीन कर देते हैं.....

Monday 24 September 2012

किन्तु! मृत्यु ठहरी हुई !!


 
वेग से चलती रेल,
और ठहरा हुआ प्लेटफ़ॉर्म !!!
जो प्रत्येक यात्री का,
है अंतिम गंतव्य........
 

जीवन भी वेग से चलायमान
किन्तु! मृत्यु ठहरी हुई !!
वो भी प्रत्येक व्यक्ति का
अंतिम गंतव्य।

Friday 21 September 2012

सुबह के अख़बार से डर लगता है

सुबह के अख़बार से डर लगता है,
आदम से आदम की दुश्मनी,जमाने मे कहर लगता है।

ना जाने किस खबर से दिल दहल जाये,
ये सोचकर भी डर लगता है।

आस-पास फैली है बारूदों की बू कैसी,
अब तो सारा शहर आतंकियों का घर लगता है।

ईमान बिकता है बाज़ारों मे अब,
नेताओं के घर,भ्रष्टाचारी का शजर लगता है।

एक झूठा संविधान थामे बैठे हैं,
जो लोकतन्त्र से बेखबर लगता है।

अपनी ही नगरी मे राम चोर बन गए,
कुछ नहीं ये तो कलयुग का असर लगता है।

सोनिया प्रदीप गौड़

(कार्टून: 'असीम त्रिवेदी')

Thursday 20 September 2012

माँ-तूने-कहा-,गाँव-मे -सूखा -पड़- गया!!

माँ-तूने-कहा-,गाँव-मे -सूखा -पड़- गया,
फिर-कैसे-तेरे-आंखो-में सावन-का-असर-पड़-गया।

शहर-की-आबो-हवा -मुझको-भी कहाँ-भाती-है।
क्या-करूँ-मजबूरीयों-से मेरा-वास्ता-पड़-गया।

बचपन -होता -,तो-स्कूल-के-बस्ते-मे-छिपा-देती-मजबूरी-को,
क्या-करूँ-मेरे-बचपन-को-वक़्त-का-चांटा-पड़-गया....

सोनिया प्रदीप

Monday 17 September 2012

चुप रही तो कलम का क्या फायदा!!!!!



आस-पास ये कैसा मंजर छा रहा है,
मुल्क क्यों हिस्सों मे बँटता जा रहा है।

चुप रही तो कलम का क्या फायदा,
सियासी चालों का दबदबा नजर आ रहा है।

गरीबों का खून सड़कों मे फैला है,
अमीर खुशी से कदम बढ़ा रहा है।

आम-आदमी की कमर झुक गई जरूरतें पूरी करते करते!
सियासत ने कहा ये तो सिजदे मे सर झुका रहा है।

नौजवान इश्क़ की चादर लपेटे हैं तन पर,
हिंदुस्तान उनकी राहों मे आँखें थका रहा है।
सोनिया बहुखंडी गौर

Tuesday 11 September 2012

प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ


 
 
प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ

जो नहीं प्रारब्ध मे उसका रुदन अब क्या करूँ?

काव्य भीगा है मेरा मर्म से

सौख्य से मंडित उसे कैसे करूँ?

दम कहाँ भर पाई उससे पूर्व तुम बैरी हुए

प्रेम की खंडित कथा, अब कहाँ किस से कहूँ?

व्याल से लिपटी निशा रचती रही अभिसंधियाँ

प्रिय बताओ अब तुम्ही,मैं त्राण कैसे करूँ?

हुआ कलुषित चित तुम्हारा,

सुरध्वनि का जल मैं लाकर शुद्ध अब कैसे करूँ?

प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ

 

 

Friday 7 September 2012

जीने की तमन्ना

यादें काला नाग बन गई,
डसने को बे-वक़्त चली आती है।

दिल जब भी टूटता है मेरा,
टीस आँखों मे नजर आती है।

तुम आज भी मुझको बेवफाई का ताज पहनाते हो,
यक़ीनन, तुम से बिछड़ के आज भी नींद नहीं आती है।

वक़्त हो चला जख्मों को भरे....
यादों की रूह जब भी आती है, जख्मों की सिलन उभर जाती है।

ख़्याल रो पड़ते हैं, जब जिक्र तुम्हारा आता है....
बेबसी की उफनती नदी मेरे आस-पास नजर आती है।

चलो तोड़ डाले दुनिया के बंधनो को...
जीने की तमन्ना तो बस तुममे ही नजर आती है।

सोनिया





 

Wednesday 5 September 2012

रिश्तों की मौत



रिश्ते बनते हैं
तो बिगड़ते क्यूँ हैं,
बिगड़ भी जाएँ तो
 दुख किस बात का,?
जब पता है दुनिया
के नियम कायदे...
मन की सूखी नदी भी
बाढ़ ग्रस्त हो जाती है
और कोई नहीं रह जाता
बिन बुलाई आपदा को
तारने वाला।....
ये बनना-बिगाड़ना
जनम-मरण के समान है
मुझे ही क्यूँ बिगड़ने की
मौत को सहना पड़ता है...
क्यूँ नहीं बनाया शिव ने भी
मेरे लिए कोई महा-मृत्युंजय।
इस जीवन मे कितने क्षण
मुझे जीना और मरना पड़ता है...
हाँ सच है जीती तो मैं तब हूँ
 जब रिश्ते बनते हैं......
और  मृत शैया मे चली जाती हूँ
जब रिश्ते टूट जाते हैं।

सोनिया बहुखंडी गौड़
 

Monday 3 September 2012

बाल गीत ( मेरी काइट )



पप्पा देखो मेरी काइट
आसमान से करती फाइट।
लहरा कर ये उड़ती जाती
सूरज से भी आँख मिलती।
है समीर की सगी सहेली
पेंग बढ़ाकर नभ संग खेली।
करती चिड़ियों से ये बातें
गोल-गोल जब चक्कर काटे।
नीली पीली लाल गुलाबी
आसमान मे उड़ती जाती।
पप्पा आप भी साथ मे आओ
मेरे संग पतंग उड़ाओ ।

 सोनिया बहुखंडी गौड़
 
ब्लॉग मे किसी की निंदा करना क्या उचित है। और खुद को मार्क्सवादी कहने वाले ये कार्य करते हैं। बहुत घ्राणित बात है ये। मैं इसे बस इतना समझती हूँ की स्वयं की और पब्लिक का ध्यान चाहते हैं। भई अच्छे काम करें पब्लिक तब आपके साथ रहेगी। घुसपैठ क्यूँ कर रहे हैं। मैं इस बात को स्वीकार करती हूँ की ब्लॉग मे मेरी कोई रुचि नहीं थी। ब्लॉग को बनवाया गया उसके लिए शुक्रिया कह चुकी हूँ कई बार। पर सर पर नाच करवाने का मेरा कोई ख्याल नहीं है।  भविस्व के लिए सचेत हो गई हूँ। जिनके लिए ये महापुरुष बार-बार तंत्र शब्द का प्रयोग कर रहे हैं उन्होने तो मुझसे आज तक इनके लिए कुछ नहीं कहा। यही अपनी ढपली अपना राग सुना रहे हैं। प्रभु यदि आप धरती के प्रभु हैं तो आप अपने ख्याल मे जिंदा रहें। मेरे श्री राम अभी हैं जिंका हांथ मेरे सर पर सदैव बना हुआ है। आइंदा से मेरा नाम पब्लिक मे लाने की जरूरत नहीं है। और हैं ठोक के कह रही हूँ आप मेरा जो बन पड़े बिगड़ लें। मैं रश्मि जी नहीं हूँ जो विनम्रता से सुने जा रही हैं। अपनी ब्लॉग के दुनिया आपको मुबारक। मैं वास्तविकता मे जीने वाली युवती हूँ। मैं आपको अपने ब्लॉग मे शिरकत के लिए नहीं बुला रही हूँ। ये खड़ी चेतावनी है। मेरा नाम बीच मे ना लाएँ। आपको पिता का दर्जा दिया गलत किया। आज आपको पता चल गया होगा की प्रभु ने भी आपको बेटी क्यूँ नहीं दी।