कितना पैदल चली, इस जिंदगी के पथ में,
पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो
सोचती हूँ!! क्या कुछ खुशियों के निशान बाकी हैं?
हाँ! रेत में बने मेरे और तुम्हारे
क़दमों के निशाँ!
जो मिट गए समय की रफ़्तार में,
...लेकिन स्मर्तियों में वो निशाँ
गाढ़े हो चले हैं...
मेरे और तुम्हारे क़दमों के निशाँ!
आज आखों में खार ही सही,
कल तक तो खुशियों के
रंग दमकते थे इन आखों में,
तुहारा सामीप्य से भोर में,
पाखी के गीत, भाव-विभोर कर जाते थे
लेकिन तुम्हारी दूरी से ,
जीवन में सलेटी रंग का धुयाँ छा गया है
आँखें स्वाद कहाँ जानती हैं,!!
लेकिन धुएं की कडुवाहट,
आँखों की पोरों में नजर आती है।
तुम नहीं हो पास प्रिये !
लेकिन तुम संग बिताये क्षण,
यादों में बदल गए हैं,
और मैं एक नन्ही बालिका में, !
और क्रीडा कर रही हूँ यादों संग
सहसा इन यादों में तुम !
चाँद बन गए,
मचल कर जल में तुम्हारा
प्रतिबिम्ब देख रही हूँ,
महसूस कर सकती हो तुमको
लेकिन जैसे ही हाँथ लगाती हूँ
तुम जल में विलीन हो जाते हो,
और इन यादों में मुझे,
एकांत कर जाते हो....एकांत कर जाते हो....
पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो
सोचती हूँ!! क्या कुछ खुशियों के निशान बाकी हैं?
हाँ! रेत में बने मेरे और तुम्हारे
क़दमों के निशाँ!
जो मिट गए समय की रफ़्तार में,
...लेकिन स्मर्तियों में वो निशाँ
गाढ़े हो चले हैं...
मेरे और तुम्हारे क़दमों के निशाँ!
आज आखों में खार ही सही,
कल तक तो खुशियों के
रंग दमकते थे इन आखों में,
तुहारा सामीप्य से भोर में,
पाखी के गीत, भाव-विभोर कर जाते थे
लेकिन तुम्हारी दूरी से ,
जीवन में सलेटी रंग का धुयाँ छा गया है
आँखें स्वाद कहाँ जानती हैं,!!
लेकिन धुएं की कडुवाहट,
आँखों की पोरों में नजर आती है।
तुम नहीं हो पास प्रिये !
लेकिन तुम संग बिताये क्षण,
यादों में बदल गए हैं,
और मैं एक नन्ही बालिका में, !
और क्रीडा कर रही हूँ यादों संग
सहसा इन यादों में तुम !
चाँद बन गए,
मचल कर जल में तुम्हारा
प्रतिबिम्ब देख रही हूँ,
महसूस कर सकती हो तुमको
लेकिन जैसे ही हाँथ लगाती हूँ
तुम जल में विलीन हो जाते हो,
और इन यादों में मुझे,
एकांत कर जाते हो....एकांत कर जाते हो....