इस क्षिति को दोगे क्या
और क्या ले जाओगे?
दुष्कर्म करके, तुम सुनो
क्या विभु बन जाओगे .....
आज दुशासन बने तुम
वस्त्र मेरे चीर कर
रूँधे गले से चीख कर मैंने कहा !!
केशव बताओ आज तुम कब आओगे?
इस क्षिति को दोगे क्या
और क्या ले जाओगे?
भीड़ मे धृतराष्ट्र मानो थे सभी!
सूरमा पैदा कोई हुआ नहीं
मैले ह्रदय की कीच को
कब तक भला छुपाओगे?
इस क्षिति को दोगे क्या
और क्या ले जाओगे?
मेरे दशा को देखकर,
त्रिलोचन के नैन खुले नहीं !!
बाजार मे लुटती रही
मेरी आबरू को आज तुम, और कितना लुटाओगे?
इस क्षिति को दोगे क्या
और क्या ले जाओगे?
सोनिया बहुखंडी गौड़
समसामयिक सार्थक चिंतन
ReplyDeleteसमाज से ढोंग-पाखंड-आडंबर की धर्म के रूप मे जब तक पूजा को समाप्त नहीं किया जाता एवं धन तथा धनवानों को अनावश्यक महत्व देना बंद नहीं किया जाता तब तक सारे प्रयास सुधार के व्यर्थ जाते रहेंगे।
ReplyDeleteसार्थकता लिए सशक्त लेखन ...
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