Tuesday 21 August 2012

ये दिल लाये कहाँ से हो

ये दिल लाये कहाँ से हो,
प्यार जिसमे पनपता है
ठौर मुझको भी बतलाना।
इश्क़ का तौर सिखलाना।
जहां इक  बसाएँगे।
सितारों से सजाएँगे...
चाँद तुम तोड़ कर लाना,
बहारें जब कभी आयें...
मेरे आँगन मे भी आयें
उनको आँगन मे बिठलाकर
रागिनी प्रीत की गाना...
अरुण की तेज किरने गर
मेरे तन को जलाएगी
पवन की सर्द साँसो को,
मेरे सदके मे कर जाना,
निशा की गुफ़्तुगु मेरी
आँखों से होगी जब
मेरे खवाबों मे आकर तुम
कलेजे से लगा जाना।
अधूरी हूँ तुम्हारे बिन
अधूरेपन को तुम प्रियतम
पूर्ण एक रूप दे जाना
पूर्ण एक रूप दे जाना
सोनिया बहुखंडी गौड़

बाल कविता (तितली पर )

रंग-बिरंगी, लाल-गुलाबी
नीली-पीली और सुनहरी
बच्चों का मन बहलाने को
दूर देश से आई तितली,
रंगो की यह शहजादी है
फूलों पर मंडराती है
...
खुद पर ये इतराती है,
बच्चों की यह खास सहेली,
गीत प्यार के ये गाती है,
रंग-बिरंगी, लाल-गुलाबी
नीली-पीली और सुनहरी
दूर देश से आई तितली।




एक बाल कविता, तितली पर लिखी है... बचपन से तितलियाँ मुझे बहुत पसंद हैं। उसी भाव और विचार से प्रेरित ये बचपन की कविता जो आप मे से कई लोगों ने सोची होगी पढे.... और खो जाएँ उन बागीचों मे जो गुम हो गए और अब दिखते हैं तो कोंकरीट के जंगल॥ जो उमस से भरे हैं और जहां ये नाजुक और सुंदर सुंदर तितलियाँ दफन हो गई हैं...:(



Wednesday 8 August 2012

धरम की साँसे, हम बचाएंगे अब कैसे?

कहीं निर्जन नहीं दिखता,
जहां बाँटू उदासी मैं।
सर-कटी लाश सी घूमूँ,
भीड़ का हांथ मैं थामे।
मक्खियों सी भिन्नभिनाती
गरीबी घूमती है यूं,
खुदा भी लग रहा मुझको
अमीरों की बात माने...
वोट बिकता रुप्पयों मे,
बिकी सच्चाई संसद मे।
बात-माने या ना माने।
ब-मुश्किल मिल रही रोटी,
देने वाले की बांह छोटी
निरंकुश श्वान को देखो।
देश को डोर से बांधे.....
मोहम्मद आएंगे कैसे,
कृष्ण तारेंगे जग कैसे?
लड़खड़ाते धरम की साँसे
हम बचाएंगे अब कैसे?
सोनिया बहुखंडी गौड़