Wednesday 26 September 2012

एक कटाक्ष कविता

शितिकष्ठ विश्व के कल्याण मे
कालकूट प्रतिपल पिये....
और मनुज आयुध लिए,
शिव संहार को खड़े....
भक्ति को दाहस्थल मे कर इति,
विचारों का नग्न नृत्य कर रहे।
हे! शिव अनुग्रही रूप को त्याग कर,
काव्य दंभ रत मनुष्य को,
अवग्रही रूप धर, काल के,
गर्भ मे उतार दो।
सोनिया प्रदीप गौड़



ये कविता उन के लिए जो रिश्ते की आड़ लेकर  अपना फायदा पूरा करते हैं। और रिश्तों को विचारों के माध्यम से कवच हीन कर देते हैं.....

Monday 24 September 2012

किन्तु! मृत्यु ठहरी हुई !!


 
वेग से चलती रेल,
और ठहरा हुआ प्लेटफ़ॉर्म !!!
जो प्रत्येक यात्री का,
है अंतिम गंतव्य........
 

जीवन भी वेग से चलायमान
किन्तु! मृत्यु ठहरी हुई !!
वो भी प्रत्येक व्यक्ति का
अंतिम गंतव्य।

Friday 21 September 2012

सुबह के अख़बार से डर लगता है

सुबह के अख़बार से डर लगता है,
आदम से आदम की दुश्मनी,जमाने मे कहर लगता है।

ना जाने किस खबर से दिल दहल जाये,
ये सोचकर भी डर लगता है।

आस-पास फैली है बारूदों की बू कैसी,
अब तो सारा शहर आतंकियों का घर लगता है।

ईमान बिकता है बाज़ारों मे अब,
नेताओं के घर,भ्रष्टाचारी का शजर लगता है।

एक झूठा संविधान थामे बैठे हैं,
जो लोकतन्त्र से बेखबर लगता है।

अपनी ही नगरी मे राम चोर बन गए,
कुछ नहीं ये तो कलयुग का असर लगता है।

सोनिया प्रदीप गौड़

(कार्टून: 'असीम त्रिवेदी')

Thursday 20 September 2012

माँ-तूने-कहा-,गाँव-मे -सूखा -पड़- गया!!

माँ-तूने-कहा-,गाँव-मे -सूखा -पड़- गया,
फिर-कैसे-तेरे-आंखो-में सावन-का-असर-पड़-गया।

शहर-की-आबो-हवा -मुझको-भी कहाँ-भाती-है।
क्या-करूँ-मजबूरीयों-से मेरा-वास्ता-पड़-गया।

बचपन -होता -,तो-स्कूल-के-बस्ते-मे-छिपा-देती-मजबूरी-को,
क्या-करूँ-मेरे-बचपन-को-वक़्त-का-चांटा-पड़-गया....

सोनिया प्रदीप

Monday 17 September 2012

चुप रही तो कलम का क्या फायदा!!!!!



आस-पास ये कैसा मंजर छा रहा है,
मुल्क क्यों हिस्सों मे बँटता जा रहा है।

चुप रही तो कलम का क्या फायदा,
सियासी चालों का दबदबा नजर आ रहा है।

गरीबों का खून सड़कों मे फैला है,
अमीर खुशी से कदम बढ़ा रहा है।

आम-आदमी की कमर झुक गई जरूरतें पूरी करते करते!
सियासत ने कहा ये तो सिजदे मे सर झुका रहा है।

नौजवान इश्क़ की चादर लपेटे हैं तन पर,
हिंदुस्तान उनकी राहों मे आँखें थका रहा है।
सोनिया बहुखंडी गौर

Tuesday 11 September 2012

प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ


 
 
प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ

जो नहीं प्रारब्ध मे उसका रुदन अब क्या करूँ?

काव्य भीगा है मेरा मर्म से

सौख्य से मंडित उसे कैसे करूँ?

दम कहाँ भर पाई उससे पूर्व तुम बैरी हुए

प्रेम की खंडित कथा, अब कहाँ किस से कहूँ?

व्याल से लिपटी निशा रचती रही अभिसंधियाँ

प्रिय बताओ अब तुम्ही,मैं त्राण कैसे करूँ?

हुआ कलुषित चित तुम्हारा,

सुरध्वनि का जल मैं लाकर शुद्ध अब कैसे करूँ?

प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ

 

 

Friday 7 September 2012

जीने की तमन्ना

यादें काला नाग बन गई,
डसने को बे-वक़्त चली आती है।

दिल जब भी टूटता है मेरा,
टीस आँखों मे नजर आती है।

तुम आज भी मुझको बेवफाई का ताज पहनाते हो,
यक़ीनन, तुम से बिछड़ के आज भी नींद नहीं आती है।

वक़्त हो चला जख्मों को भरे....
यादों की रूह जब भी आती है, जख्मों की सिलन उभर जाती है।

ख़्याल रो पड़ते हैं, जब जिक्र तुम्हारा आता है....
बेबसी की उफनती नदी मेरे आस-पास नजर आती है।

चलो तोड़ डाले दुनिया के बंधनो को...
जीने की तमन्ना तो बस तुममे ही नजर आती है।

सोनिया





 

Wednesday 5 September 2012

रिश्तों की मौत



रिश्ते बनते हैं
तो बिगड़ते क्यूँ हैं,
बिगड़ भी जाएँ तो
 दुख किस बात का,?
जब पता है दुनिया
के नियम कायदे...
मन की सूखी नदी भी
बाढ़ ग्रस्त हो जाती है
और कोई नहीं रह जाता
बिन बुलाई आपदा को
तारने वाला।....
ये बनना-बिगाड़ना
जनम-मरण के समान है
मुझे ही क्यूँ बिगड़ने की
मौत को सहना पड़ता है...
क्यूँ नहीं बनाया शिव ने भी
मेरे लिए कोई महा-मृत्युंजय।
इस जीवन मे कितने क्षण
मुझे जीना और मरना पड़ता है...
हाँ सच है जीती तो मैं तब हूँ
 जब रिश्ते बनते हैं......
और  मृत शैया मे चली जाती हूँ
जब रिश्ते टूट जाते हैं।

सोनिया बहुखंडी गौड़
 

Monday 3 September 2012

बाल गीत ( मेरी काइट )



पप्पा देखो मेरी काइट
आसमान से करती फाइट।
लहरा कर ये उड़ती जाती
सूरज से भी आँख मिलती।
है समीर की सगी सहेली
पेंग बढ़ाकर नभ संग खेली।
करती चिड़ियों से ये बातें
गोल-गोल जब चक्कर काटे।
नीली पीली लाल गुलाबी
आसमान मे उड़ती जाती।
पप्पा आप भी साथ मे आओ
मेरे संग पतंग उड़ाओ ।

 सोनिया बहुखंडी गौड़
 
ब्लॉग मे किसी की निंदा करना क्या उचित है। और खुद को मार्क्सवादी कहने वाले ये कार्य करते हैं। बहुत घ्राणित बात है ये। मैं इसे बस इतना समझती हूँ की स्वयं की और पब्लिक का ध्यान चाहते हैं। भई अच्छे काम करें पब्लिक तब आपके साथ रहेगी। घुसपैठ क्यूँ कर रहे हैं। मैं इस बात को स्वीकार करती हूँ की ब्लॉग मे मेरी कोई रुचि नहीं थी। ब्लॉग को बनवाया गया उसके लिए शुक्रिया कह चुकी हूँ कई बार। पर सर पर नाच करवाने का मेरा कोई ख्याल नहीं है।  भविस्व के लिए सचेत हो गई हूँ। जिनके लिए ये महापुरुष बार-बार तंत्र शब्द का प्रयोग कर रहे हैं उन्होने तो मुझसे आज तक इनके लिए कुछ नहीं कहा। यही अपनी ढपली अपना राग सुना रहे हैं। प्रभु यदि आप धरती के प्रभु हैं तो आप अपने ख्याल मे जिंदा रहें। मेरे श्री राम अभी हैं जिंका हांथ मेरे सर पर सदैव बना हुआ है। आइंदा से मेरा नाम पब्लिक मे लाने की जरूरत नहीं है। और हैं ठोक के कह रही हूँ आप मेरा जो बन पड़े बिगड़ लें। मैं रश्मि जी नहीं हूँ जो विनम्रता से सुने जा रही हैं। अपनी ब्लॉग के दुनिया आपको मुबारक। मैं वास्तविकता मे जीने वाली युवती हूँ। मैं आपको अपने ब्लॉग मे शिरकत के लिए नहीं बुला रही हूँ। ये खड़ी चेतावनी है। मेरा नाम बीच मे ना लाएँ। आपको पिता का दर्जा दिया गलत किया। आज आपको पता चल गया होगा की प्रभु ने भी आपको बेटी क्यूँ नहीं दी।