Saturday 26 January 2013

जन-गण चलो मन से एक गान गायें.


ये संविधान गरीबों और मध्यम वर्ग के लिए सजा है
गौर से देखो अमीरों की बस्ती मे ये एक मजा है।

एक औरत की आबरू कैसे बचे?,इसका कोई अनुच्छेद नहीं!!!
दोषियों को बचा लेने पर न्यायधीश को कोई खेद नहीं....

प्रस्तावना तो बस नाम की कुंजी है....
जिधर हक की लड़ाई मे उम्मीदें हमारी भूँजी हैं

ये गणतन्त्र दिवस मनाने की सज़ा बहुत बड़ी है....
लालची नेताओं की जीभ श्वान से बड़ी है.....

जन-गण चलो मन से एक गान गायें......
ये संविधान सही नहीं,चलो एक नया संविधान बनायें।
सोनिया
 

Friday 18 January 2013

मैं गंगा बनकर आती हूँ

क्या उत्तर दूँ जग को मैं
कौन हृदय मे बसता है
आतुर,विकल नयन मे,
एक स्वप्न तुम्हारा सजता है।

तुम दुर्लभ से लगते हो क्यूँ?
...जैसे मुझे मिल ना पाओगे,
शूलों से भर हुआ जीवन
पुष्पों से सजा ना पाओगे 





मैं गंगा बनकर आती हूँ
के प्यास बुझा लो तुम अपनी
तुम सागर तट पर जाते हो
क्यूँ प्यास बुझाने को अपनी ?!!!!

मैंने अपने गीत समर्पित
कर डाले जाने क्यूँ तुमको ?
प्रीत की रीत निभा ना पाये
क्या गीत ना भाए मेरे तुमको?

जेठ की घाम भी क्या सोखेगी
मेरे बहते नीर को,
जब तुम दिल से ही ना समझे
मेरे हृदय की पीर को,

क्या उत्तर दूँ जग को मैं
कौन हृदय मे बसता है.
सोनिया