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Friday 22 March 2013

हमारे रिश्ते का “सिजेरियन” !


 वो पहाड़ी पथ आज भी,

तटस्थ होगा, जिधर-

मेरे और तुम्हारे कदम चले थे कभी।

हाँ हमारे रिश्तों की हत्या हो गई-

जैसे  भ्रूणहत्याकरते हैं लोग।

नहीं जानती थी कि, वो

पथअंतिमविदा पथहोगा।

सुनो! याद है.... ठंड से ठिठुरती मैं,

और मूक चट्टान पर चिपका पसरा पाला,

मैंने बर्फ समझा था उसे...

अंतर तो तुमने समझाया था........

पाले और बर्फ का.....

मेरे ख़ुश्क  हाथो में आते ही, ना जाने क्यूँ?

वो पाला पिघल गया,या दम तोड़ दिया उसने!

क्या मेरे हाथो से ही मिलनी थी उसे मुक्ति?

फिर तुम्हारीझिझकको

क्यूँ ना मुक्त करा पाई मैं-

और ना तुम्हारे हाथों को स्पर्श कर पाई मैं।

क्या कॉफी के प्याले का झाग था हमारा प्रेम?

जिसका प्रारब्ध बस मिट जाना था.....

तुम्हारे बगल में बैठे-बैठे बस मैं

तुम्हारी ठंडी आहें महसूस कर पाई.........

लेकिन अपनी गर्म साँसों का आलिंगन

तुम्हारी साँसो से तनिक कर पाई।

ना जाने काल का षड्यंत्र था,

या समय ने जानबूझ कर दिया

हमारे रिश्ते कासिजेरियन” !

जिसमें हमारे रिश्ते ने ही दम तोड़ा.....

हाँ- ये बात अलग है कि हमारी,

आत्माएँ आज भी भटक रही हैं!

वही तटस्थ पहाड़ी पथ पर,

जो हमारी अंतिम विदास्थली था।







 

 

Wednesday 20 March 2013

सुनो!!! मैं मर रही हूँ. और तुम निश्चिंत हो।


मैं मर रही हूँ धीरे-धीरे......

और तुम निश्चिंत हो।

जैसे तूफान आने से पहले

सागर  निश्चिंत होता है।

आतुर आत्मा देह के भीतर

छटपटा रही है, और तुम-

अपने तरल विचारों को

मंथ रहे हो……………

जैसे सागर को मंथा गया था कभी ,

ना जाने कब तुम्हारे विचार

गाढ़े होंगे और कब उसमे से

प्रेमरूपी अमृत निकलेगा........

जो मुझे जीवन-दान देगा

सुनो!! बरस ना लगाना,

अपने विचारों को सही,

दिशा में लाने मे.....

ना जाने कब मेरी भावनाएं,

धरती के गर्त में समा जाएँ,

जैसे कई सभ्यताएं समा गई!!!!

हड़प्पा जैसी--

हाँ!!! मैं भी तो एक सभ्यता हूँ,

सामाजिक सभ्यता---!

जो तुम्हारी अनदेखी से,

धीरे-धीर लुप्त हो रही है।

बचा लो मेरे अस्तित्व को, और

संरक्षण और संवर्धन कर लो मेरा,

मेरे ख़त्म होने से पहले............

सुनो!!! मैं मर रही हूँ

और तुम निश्चिंत हो।

सोनिया

Tuesday 19 March 2013

मैं विरह “विदग्धा” हूँ................


विरह विदग्धा” हूँ मैं !!!
तुम्हारे लिए।
संशयान्वित न होना प्रेयस
भरोसा करो मेरा हृदय से।
आज विक्षुब्ध हूँ तुम्हारे,
विवेचन से की मैं,
समस्त वचन भूल गई।
सत्य कहा था मैंने कि,
तुम मर नहीं सकते.....
क्यूंकी तुम्हारा जीवन
मेरे पास संरक्षित है,
और मेरा तुम्हारे पास!!!
हम साहूकार बन चुके हैं,
ब्याज के तौर पर,
साँसो का आदान-प्रदान चल रहा है।
काल अवश्य लुब्धक बना बैठा है,

हमारे प्रेम को जाल में फँसाने के लिए।
ये कुछ नहीं बस मजबूरीयों कि व्यथा थी,
जो भोर मे सर्द साँसे ले रही थी।
जिसने तुम्हारे तन को सिहरा दिया।
हाँ--ये सामाजिक रीतियाँ दाहस्थल बन जाती हैं।
कभी-कभी,
और तुम सोचते होगे कि मैंने,
समस्त वचन चिता मे जला दिये।
उफ़्फ़! तुम्हारी सोच की  पैंठ,
कितनी विस्तृत हो चुकी है।
यकीनन इस से मेरे दुख
का जवालामुखी फूट पड़ता है।
और उसका लावा फ़ैल जाता है,
ये लावा कुछ नहीं मेरा,
मेरा भटकता हुआ दर्द है....
जो अचानक खौल पड़ता है,
सुनो!!! जिंदा हूँ मैं अभी तक
क्यूंकी मेरे प्राण संरक्षित हैं तुम्हारे पास
और तुम्हारे मेरे पास...........
मैं विरह  विदग्धा”  हूँ................
मात्र तुम्हारे लिए।
सोनिया 

Thursday 14 March 2013

मैं कुछ नहीं........मैं बस तुम हूँ!!!!!

मैं कुछ नहीं, मात्र,
एक पिघला हुआ धुआँ हूँ
जो तुम्हारे इर्द-गिर्द फैला है,
एक आभामंडल कि भांति,
लाख प्रयासों से भी तुम
उड़ा नहीं सकते मुझे।
... मैं कुछ नहीं एक ‘याद’ भर हूँ
जो निहत्थी और निडर होकर
आती है तुम्हारे समीप,
एक हथियार कि तरह,
और तुम पराजित हो जाते हो
बिना मुझसे युद्ध किए।
मैं कुछ नहीं चंद ‘तारीख़’ हूँ
जो लटकी पड़ी हैं तुम्हारे,
जीवन कि दीवार पर।
कुछ तारीख़ें वह हैं
जिनके संग मिलकर मैंने और तुमने
मधुर पल बिताए.....
और कुछ तारीख़ें वह हैं 

 जिनमे हम कभी नहीं मिल पाये।
मैं कुछ नहीं एक ‘अनहोनी’ हूँ
जो बस घट गई तुम्हारे जीवन में!!!!
और छोड़ गई कुछ और होने का अंदेशा!!!
क्यूंकी ‘होनी को कौन टाल पाया है भला’।
मैं कुछ नहीं एक ‘सूखा घाव’ हूँ।
मुझे स्मरण करने के बहाने,
जिसे तुम प्रायः हरा कर लेते हो।
और भिड़ जाते हो दर्द से!!!
जिसका तुमको तनिक डर नहीं!!!!!
मैं कुछ नहीं........मैं बस तुम हूँ!!!!!
मैं मौजूद हूँ तुम्हारे अंतस में
मत ढूंडो मुझे इधर-उधर,
खुद में खोजो- मेरा अस्तित्व!!
जो तुम्हारे अंतस मे पसरा पड़ा है,
तुम जिधर,जाओगे मुझे ही पाओगे।
हाँ- इस खोज-बीन में तुम
खुद को नहीं देख पाओगे!!!
क्यूंकी तुम्हारा अस्तित्व
मेरे भीतर पसरा पड़ा होगा।
सोनिया