Tuesday 25 June 2013

हाँ गौरांग आज भी यादें, बेबसी की चादर ओढ़े, मेरे पास दुबकी बैठी है ....

हाँ गौरांग आज भी यादें,
बेबसी की चादर ओढ़े,
मेरे पास दुबकी बैठी है
कैसे इजाज़त दे दूँ उसे,
मेरे पास से दूर जाने की
एक यादों का ताना-बाना ही तो मुझे
आज भी तुमसे जोड़े रखता है।

अपनी-अपनी परछाइयाँ हमने,
एक दूसरे के घरों में विस्थापित कर दी हैं
और उन्हे शामिल कर लिया है अपने जीवन में
एक दूसरे के ना हो सके तो क्या हुआ,
एक-दूसरे की परछाइयों को
बाहों में भरकर काम चला रहे हैं।

हाँ गौरांग श्यामली इन दिनो
डूबी हुई है प्यार के गुलाबी अहसास में,
उमसाई दोपहर के सूनेपन में,
दुखों से पगलाई, सरसराती हवाओं में,
और एक उम्मीद में!
के तुम मना लोगे मुझे
पर तुम्हारी ना- मनाने की आदत
याद आते ही बेचैन हो जाती हूँ।
हाँ गौरांग यादें देश-परदेश
जात-कुजात नहीं देखती,
वो वक़्त को मात देकर आ जाती हैं,
इन दिनो तुम्हारी यादें मेरे देश में आकर
मेरा कत्ल कर रही हैं,
और मेरी यादें तुम्हारे देश में तुम्हारा!

क़त्ल होने से बेहतर है गौरांग
छोड़ दो अपनी बुरी आदत और,
मना लो श्यामली को समय रहते,
वो मान जाएगी.........
क्योंकि उसकी बुरी आदतें छूट चुकी हैं।

Tuesday 4 June 2013

चाँदनी एकांत की बेवा नजर आती है.....



नहीं रहते पहले जैसे ख़्वाब
मुरझा जाते हैं प्रेम पुहुप
किसी साँवली सी शाम को
प्यासी निशा में गुम हो
जाती हैं, वो खामोश आँखों की बातें।
अलगाव के सहमे से स्पर्श।

अब नहीं निकलते अधरों से 
थरथराते प्रेम के शब्द
बस उतेजना कागज के
पुर्जों में थरथराती है.....
कहाँ नजर आती है
देह को रोमांचित करने वाली समीर,
बस वियोग की उमस में
लथपथ रहती हूँ।

चाँदनी दिखती जरूर है,
पर एकान्त की बेवा नजर आती है।
सहसा तुमको याद करना,
अभिशाप हो जाता है.....
स्वप्न कायर की भांति
भागते नजर आते हैं.....
और मैं जलने लगती हूँ
शब्दों की मशाल से ......

क्यूँ कब और कैसे हुआ
अलगाव हमारा?
आज भी प्रश्न की खोज में हूँ,
और समय निरुत्तर खड़ा है,
मेरे समक्ष................
सुनो आ जाना उसी मोड पर
जहां एक मुलाक़ात अधूरी पड़ी है।
और हो सके तो समय के रिक्त स्थानो
को भी भर देना.........
सोनिया