Saturday 11 November 2017

निर्वासन के बाद देहकोठरी

निर्वासन के बाद देह कोठरी
---------------------------------

माँ बोली ठीक नही तुम्हारे लिए
बिल्कुल नागफनी है वह
स्वाद भी मीठा नही
रंग शक्कर जैसा है बस उसका

उसने सुना और
अपनी आकाश जैसी बाहें फैला दी
पहाड़ तिलचट्टों  जैसे शोर मचाते रहे
रातें नदियों में डूबती गईं, चाँद शर्माता रहा

रात के विदा होते ही सिमटने लगी उसकी लंबी लंबी बाहें
बिखरे पड़े थे नागफनी के दंश,
पहाड़ों पर रेंगती लाल चीटियां
झूठे आनंद की मौत अपनी ही परछाइयों में
खामोशी से देखती रही ये हादसे मेरी माँ
जिसने कहा था ठीक नही वह तुम्हारे लिए
Soniya Bahukhandi

निर्वासन के बाद देहकोठरी

निर्वासन के बाद देह की कोठरी
--------------------------------------

उसने चुना प्यार
भूख नही लगती अब उसे
पेट फूलों की पंखुड़ियों से छोटा होता है

धूप उस पर गुजरती है
वह फूल सी कुम्हला जाती है
कुम्हलाते फूलों का झड़ना पतझड़ के जीवन की परिभाषा है

पतझड़ का जीवित होते ही
बोलना
भूख बढ़ाना सीखो
बढ़ती भूख वसन्त का पुनर्जीवन होगी

अब उग रहे हैं उसकी नाभि में
सुर्ख फूल

शेष
Soniya Bahukhandi